1)Irritable Bowel Syndrome (IBS) क्या है?
एक सामान्य परन्तु लम्बे समय तक चलने वाला पाचन तंत्र का विकार है। इसमें पेट में दर्द, ऐंठन, गैस, सूजन और मल त्याग की आदतों (कब्ज़, दस्त या दोनों) में बदलाव होते हैं। यह आँतों को स्थायी नुकसान नहीं पहुँचाता और न ही कैंसर का कारण बनता, लेकिन जीवन की गुणवत्ता पर गहरा असर डाल सकता है।
2) IBS क्यों होता है?
IBS का एक ही कारण नहीं है, बल्कि कई वजहें मिलकर लक्षण पैदा कर सकती हैं:
- आंत और दिमाग के बीच असंतुलन — पेट की नसें और मस्तिष्क आपस में ठीक से संवाद न कर पाएं।
- आंतों की गति में बदलाव — कभी बहुत तेज़ चलना (दस्त) तो कभी बहुत धीमा (कब्ज़)।
- संवेदनशीलता बढ़ना — सामान्य गैस या भोजन भी ज़्यादा दर्द दे सकता है।
- खाद्य असहिष्णुता — खासकर FODMAPs नामक कार्बोहाइड्रेट कुछ लोगों में समस्या बढ़ाते हैं।
- संक्रमण के बाद — पेट के संक्रमण के बाद कई बार IBS शुरू हो जाता है।
- तनाव और चिंता — मानसिक स्वास्थ्य का सीधा असर पेट की समस्या पर पड़ सकता है।
3) Irritable Bowel Syndrome IBS के लक्षण
- पेट में ऐंठन या दर्द (अक्सर मल त्याग के बाद राहत मिलती है)।
- दस्त (IBS-D), कब्ज़ (IBS-C) या दोनों का चक्र।
- पेट फूलना और गैस।
- मल में सफेद श्लेष्म (mucus) दिखना।
- बार-बार टॉयलेट जाने की इच्छा या अपूर्ण मलत्याग का अहसास।
4) कैसे पता चलता है?
IBS का निदान ज़्यादातर लक्षणों और इतिहास के आधार पर किया जाता है। डॉक्टर जरूरत पड़ने पर खून, मल और कभी-कभी एंडोस्कोपी या कॉलोनोस्कोपी जैसी जांच कर सकते हैं, ताकि अन्य गंभीर बीमारियों को बाहर किया जा सके।
5) IBS हो जाए तो क्या करें?
- डॉक्टर से परामर्श लें — सही निदान और इलाज के लिए।
- जीवनशैली में सुधार करें — पर्याप्त नींद, हल्का व्यायाम और नियमित रूटीन रखें।
- डायट पर ध्यान दें — ट्रिगर खाद्य पहचानना और उन्हें सीमित करना ज़रूरी है।
- तनाव नियंत्रण — योग, ध्यान, ब्रीदिंग एक्सरसाइज़, माइंडफुलनेस से मदद मिल सकती है।
- दवाइयाँ (डॉक्टर की सलाह पर) — दस्त, कब्ज़ या दर्द के अनुसार अलग-अलग दवाइयाँ दी जाती हैं।
6) खान-पान में क्या खाएँ और क्या न खाएँ
क्या खाएँ:
- चावल, आलू, ओट्स जैसे साधारण और हल्के कार्बोहाइड्रेट।
- पकी हुई सब्ज़ियाँ जैसे गाजर, बैंगन (सीमित मात्रा में)।
- केले, अंगूर, स्ट्रॉबेरी जैसे कुछ फल (संयम से)।
- लैक्टोज-फ्री दूध या दही यदि दूध से समस्या होती है।
- सोल्युबल फाइबर वाले भोजन (जैसे ओट्स, चिया सीड्स की थोड़ी मात्रा)।
- छोटे-छोटे हिस्सों में भोजन करें और धीरे-धीरे खाएँ।
क्या न खाएँ:
- प्याज़, लहसुन, सेब, बीन्स और कुछ नट्स जैसे हाई-FODMAP खाद्य।
- बहुत तला-भुना और तैलीय भोजन।
- शराब, कोल्ड ड्रिंक और ज़्यादा कॉफ़ी।
- बहुत मसालेदार और प्रोसेस्ड फूड।
उपयोगी टिप्स:
- फूड डायरी रखें — क्या खाया और कितने समय बाद लक्षण हुए, नोट करें।
- Low-FODMAP डायट कई मरीजों को राहत देती है, लेकिन इसे डायटिशियन की गाइडेंस में अपनाना बेहतर है।
7) दवाएँ और उपचार
- कब्ज़ वाले मरीजों के लिए फाइबर सप्लीमेंट, पानी ज़्यादा पीना और कभी-कभी विशेष दवाएँ।
- दस्त वाले मरीजों के लिए ऐंटी-डायरियल दवाएँ।
- दर्द और ऐंठन के लिए ऐंटीस्पास्मोडिक दवाएँ।
- कुछ मामलों में प्रोबायोटिक्स या पुदीना तेल की कैप्सूल मददगार हो सकती हैं।
- यदि तनाव बड़ा कारण है तो काउंसलिंग, CBT या योग जैसी मानसिक स्वास्थ्य तकनीकें बहुत उपयोगी साबित होती हैं।
8) रोज़मर्रा के व्यावहारिक सुझाव
- रोज़ाना 20–30 मिनट पैदल चलना या हल्का व्यायाम करें।
- दिनभर पर्याप्त पानी पिएँ।
- छोटे हिस्सों में 4–5 बार भोजन करें।
- तनाव कम करने की तकनीकें (योग, ध्यान, सांस अभ्यास) अपनाएँ।
9) कब डॉक्टर से तुरंत मिलें?
- यदि वजन लगातार घट रहा हो।
- मल में खून या काले रंग का मल दिखे।
- रात में लक्षण बढ़ रहे हों।
- या 50 वर्ष के बाद अचानक नए लक्षण शुरू हो जाएँ।