गणेश विसर्जन : जागरूकता की आवश्यकता (Ganesh Visarjan)
भारत में गणेश चतुर्थी एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे भक्त गणपति भगवान की भक्ति के साथ मनाते हैं। दस दिनों तक गणेश जी की पूजा, हवन और आराधना के बाद, उनके विसर्जन की परंपरा है। गणेश विसर्जन, जो कि भक्तों के लिए भावनात्मक और धार्मिक क्षण होता है, उसे सही तरीके से करना आवश्यक है। लेकिन हाल के वर्षों में हमने देखा है कि कई लोग भगवान गणेश की मूर्तियों को पूजा के बाद गंदे नाले, झील, या नदियों में विसर्जित कर देते हैं, जिससे न केवल हमारे भगवान का अपमान होता है, बल्कि हमारे पर्यावरण पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है।
परंपरागत रूप से गणेश विसर्जन का उद्देश्य भक्तों के लिए एक धार्मिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें भगवान को सम्मान के साथ विदा किया जाता है। लेकिन आधुनिक समय में, कई लोग गणेश विसर्जन के दौरान बिना सोचे-समझे गंदी नालियों, तालाबों और नदियों में मूर्तियों का विसर्जन कर देते हैं। यह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से अनुचित है बल्कि इससे जलस्रोतों का प्रदूषण भी बढ़ता है।
मूर्तियों को बनाने में उपयोग होने वाला प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP), केमिकल रंग और अन्य हानिकारक तत्व पानी में घुलकर इसे जहरीला बना देते हैं। इसका प्रभाव न केवल जलजीवों पर पड़ता है, बल्कि इस पानी का उपयोग करने वाले लोगों पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। गणेश मूर्तियों में उपयोग होने वाले रंगों में लेड, पारा, और कैडमियम जैसे रसायन होते हैं, जो जल संसाधनों को गंभीर रूप से प्रदूषित करते हैं।
हालांकि, पिछले कुछ सालों में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ी है और उन्होंने गणेश विसर्जन के दौरान प्रदूषण कम करने के लिए विभिन्न उपायों का पालन करना शुरू किया है। कई लोग अब मिट्टी से बनी गणेश मूर्तियों का इस्तेमाल करते हैं जो विसर्जन के बाद आसानी से पानी में घुल जाती हैं और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचातीं। इसके साथ ही, कई लोग अपने घरों या कॉलोनियों में टब या विशेष रूप से तैयार किए गए पानी के टैंकों में विसर्जन करने लगे हैं। इससे न केवल पानी को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है, बल्कि भगवान गणेश का विसर्जन भी सम्मानपूर्वक किया जाता है।
कुछ स्थानों पर, स्थानीय प्रशासन और एनजीओ ने भी पर्यावरण के अनुकूल गणेश विसर्जन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं। वे लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि वे प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों का इस्तेमाल न करें और केवल मिट्टी की मूर्तियों को प्राथमिकता दें। इसके अलावा, कई जगहों पर सामूहिक विसर्जन स्थलों की व्यवस्था की गई है, जहां मूर्तियों का विसर्जन एक सुरक्षित और नियंत्रित तरीके से किया जाता है, जिससे प्रदूषण कम होता है।
हालांकि जागरूकता बढ़ी है और कई लोग सही तरीकों से गणेश विसर्जन करने लगे हैं, फिर भी कई लोग अभी भी गंदे नालों और तालाबों में मूर्तियों का विसर्जन करते हैं। इस तरह की गतिविधियाँ न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं, बल्कि भगवान गणेश के प्रति अपमानजनक भी हैं। गणेश जी की पूजा के बाद उन्हें नालों या प्रदूषित स्थानों पर विसर्जित करना, एक प्रकार से उनके सम्मान का उल्लंघन है।
कई बार देखा जाता है कि लोग विसर्जन के समय जल्दबाजी में या सुविधा की दृष्टि से किसी भी जगह पर मूर्ति विसर्जित कर देते हैं। इसका मुख्य कारण है जागरूकता की कमी और धार्मिक रीति-रिवाजों को समझने की कमी। इन लोगों को यह समझने की जरूरत है कि भगवान की पूजा के बाद उनकी मूर्ति को साफ और शुद्ध स्थान पर विसर्जित करना जरूरी है, ताकि भगवान का सम्मान बना रहे और पर्यावरण भी सुरक्षित रहे।
जागरूकता बढ़ाने के उपाय
1.शिक्षा और प्रचार: सरकारी संस्थानों, स्कूलों, कॉलेजों और स्थानीय समाजिक संगठनों को गणेश विसर्जन के पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाने चाहिए। यह शिक्षा लोगों को मूर्ति विसर्जन के दौरान होने वाले प्रदूषण और उसके समाधानों के बारे में जागरूक करेगी।
2.मिट्टी की मूर्तियों का प्रचार: प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों की जगह मिट्टी से बनीं पारंपरिक मूर्तियों का इस्तेमाल करना अधिक सुरक्षित है। इन मूर्तियों का पानी में विसर्जन के बाद कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता और यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल होता है। इन मूर्तियों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
3.विशेष विसर्जन स्थलों की व्यवस्था: सरकार और स्थानीय प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी बड़े शहरों और कस्बों में विशेष रूप से तैयार किए गए विसर्जन स्थल हों, जहां मूर्तियों को सुरक्षित तरीके से विसर्जित किया जा सके। इस प्रकार के स्थलों पर मूर्तियों का पुनर्चक्रण भी किया जा सकता है, ताकि मूर्ति का पुनः उपयोग किया जा सके और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।
4.सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन: यह हर एक व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह गणेश विसर्जन के दौरान पर्यावरण को सुरक्षित रखने का प्रयास करे। अगर हम अपने धार्मिक कार्यों को सही तरीके से निभाते हैं और अपने भगवान का सम्मान करते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपने कृत्यों से पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं।
गणेश विसर्जन एक पवित्र धार्मिक प्रक्रिया है, जिसे पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ किया जाना चाहिए। लेकिन यह भी जरूरी है कि हम इस प्रक्रिया को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से करें। प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों को गंदे नालों और तालाबों में विसर्जित करने से भगवान का अपमान होता है और हमारे जल संसाधनों का प्रदूषण बढ़ता है। समय आ गया है कि हम जागरूक हों और अपने धार्मिक रीति-रिवाजों को निभाते हुए पर्यावरण को भी संरक्षित करें।
आइए, हम सब मिलकर इस गणेश चतुर्थी पर प्रण लें कि हम गणेश विसर्जन सही तरीके से करेंगे और अपने भगवान का सम्मान करते हुए पर्यावरण को सुरक्षित रखेंगे। यह हमारे और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य की ओर एक कदम होगा।
जानकारी को अधिक से अधिक लोगों को शेयर करें ताकि हिन्दू धर्म और हमारे भगवान का अपमान न हो।